भूमि स्वामी को सिर्फ मुआवजा पाने का हकदार होता है, निर्माण रोकने का अधिकार नहीं-हाईकोर्ट
बिजली लाइन बिछाने लेकर की गई थी अपील
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया है कि बिजली ट्रांसमिशन लाइन जैसे जनहित कार्यों के लिए भूमि स्वामी की पूर्व सहमति जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जमीन अधिग्रहित नहीं होती, बल्कि मालिकाना हक भूमि स्वामी के पास ही रहता है और वह सिर्फ मुआवजा पाने का हकदार होता है, निर्माण रोकने का अधिकार नहीं। कंपनी ने राज्य शासन से प्राप्त स्वीकृति की शर्तों का पालन नहीं किया। यह भी कहा कि 31 दिसंबर 2024 को भेजे गए कानूनी नोटिस की भी अनदेखी की गई और बिना भौतिक निरीक्षण के मुआवजा नोटिस जारी कर दिए गए, जिसमें कुछ खसरों का मुआवजा नहीं दिया गया। सीएसपीटीसीएल की ओर से उपस्थित अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि 24 जून 2024 और 22 जनवरी 2025 को मुआवजा प्रस्तावित था, लेकिन याचिकाकर्ता ने इसे स्वीकार नहीं किया।
उन्होंने यह भी कहा कि यह निर्माण कार्य नेशनल हाईवे 130 ए के कारण ट्रांसमिशन लाइन के डायवर्सन के तहत किया गया। जनहित सर्वोपरि है, यह आदेश जस्टिस अमितेंद्र किशोर प्रसाद की एकलपीठ ने छत्तीसगढ़ स्टेट पॉवर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड (सीएसपीटीसीएल) के पक्ष में सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विद्युत निर्माण रोकने की कोई अनुमति नहीं – हाईकोर्ट गई और कहा कि राष्ट्रीय महत्व की परियोजना अधिनियम, 2003 और टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के तहत ऐसे निर्माण के लिए पूर्व सहमति आवश्यक नहीं है, लेकिन कंपनी को जमीन में प्रवेश करने से पहले सूचना देना अनिवार्य है। मामले में, कोरबी गांव (बलौदा तहसील, जांजगीर-चांपा जिला) के 94 वर्षीय किसान ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि सीएसपीटीसीएल ने बिना किसी सूचना और अनुमति के उनकी 8.73 एकड़ कृषि भूमि पर 16 गड्ढे खोदकर ट्रांसमिशन टावर का निर्माण शुरू कर दिया है, जिससे उनकी लगभग 4.86 एकड़ जमीन प्रभावित हुई है। याचिकाकर्ता ने इस निर्माण को रोकने, संरचनाओं को हटाने और मानसिक उत्पीड़न के लिए मुआवजे की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि निर्माण पूरा होने की तिथि 11 मार्च 2024 है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार द्वारा 13 दिसंबर 2006 को जारी अधिसूचना के तहत सीएसपीटीसीएल को टेलीग्राफ अथॉरिटी का दर्जा दिया गया है, जो उसे इस तरह के निर्माण की एकतरफा अनुमति देता है। कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि बिजली ट्रांसमिशन जैसी परियोजनाएं राष्ट्रीय विकास के लिए जरूरी हैं और इन्हें बाधित नहीं किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश को रद्द करते हुए याचिकाकर्ता को मुआवजा लेकर 60 दिन के भीतर सीएसपीटीसीएल को भुगतान करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा कि निर्माण कार्य में किसी तरह की बाधा नहीं आनी चाहिए।