भोपाल: City बसें ठप, e-buses पर टिकी उम्मीदें
भोपाल(मध्यप्रदेश)। राजधानी का पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम इन दिनों बदहाली से गुजर रहा है। पिछले एक साल में ढाई सौ से ज्यादा सिटी बसें बंद हो चुकी हैं। वर्तमान में 25 रूट में से केवल 95 बसें ही दौड़ रही हैं, जबकि 10 से अधिक रूट पूरी तरह ठप पड़े हैं। इसका सीधा असर आम जनता, खासकर महिलाओं, छात्रों और नौकरीपेशा लोगों पर पड़ रहा है। रोजाना करीब 1 लाख लोग परेशान हो रहे हैं।
ई-बसों को लेकर बढ़ी उम्मीदें
नगर निगम का दावा है कि स्थिति को सुधारने के लिए जल्द ही 100 ई-बसें चलाई जाएंगी। यह पीएम ई-बस सेवा के फेस-1 का हिस्सा है, जिसके लिए संत हिरदाराम नगर (बैरागढ़) और कस्तूरबा नगर में दो नए डिपो बनाए जा रहे हैं। नए बस ऑपरेटर का चयन हो चुका है और नए साल से इन बसों को सड़कों पर उतारने की तैयारी है।
फेस-2 में 95 और ई-बसें जुड़ेंगी, जिनके लिए आरिफ नगर और कोलार रोड पर डिपो बनाए जा रहे हैं। हालांकि इस चरण के लिए ऑपरेटर चयन और अन्य प्रक्रियाएं अभी बाकी हैं।
सांसदों और विधायकों ने जताई नाराज़गी
हाल ही में हुई जिला विकास समन्वय और निगरानी समिति (दिशा) की बैठक में भी सिटी बसों का मुद्दा उठा। सांसद आलोक शर्मा ने हैरानी जताते हुए निगम कमिश्नर से पूछा कि आखिर इतने बड़े पैमाने पर बसें क्यों बंद हुईं? उन्होंने कहा कि “पब्लिक ट्रांसपोर्ट मजबूत होना चाहिए। जब मैं भोपाल का महापौर था, तब छात्रों, दिव्यांगों, महिलाओं, सीनियर सिटीजन और कर्मचारियों के लिए महापौर स्मार्ट पास की सुविधा दी गई थी। इसे फिर से शुरू किया जाए।”
विधायक भगवानदास सबनानी ने भी उनकी बात से सहमति जताई। वहीं, विधानसभा में हुजूर विधायक रामेश्वर शर्मा ने भी तारांकित प्रश्न लगाकर मुद्दा उठाया।
क्यों बंद हुईं बसें?
सिटी बसों का संचालन भोपाल सिटी लिंक लिमिटेड (BCLL) के जरिए चार एजेंसियों—मां एसोसिएट्स, एपी मोटर्स, श्री दुर्गांबा और आई-मोबिलिटी—के हाथ में था। पिछले साल 4 जुलाई को सबसे पहले मां एसोसिएट्स ने अपनी 149 बसें बंद कर दीं। वजह थी टिकट कलेक्शन की जिम्मेदारी संभालने वाली एजेंसी चलो एप से भुगतान को लेकर विवाद।
‘चलो एप’ ने प्रति किमी दी जाने वाली राशि घटाने की मांग की, जिस पर सहमति नहीं बनी। विवाद बढ़ता गया और ऑपरेटर एक-एक करके पीछे हटने लगे। अब स्थिति यह है कि 368 बसों में से केवल 95 बसें ही चल रही हैं।
लोगों की बढ़ती परेशानी
बसों की कमी का सबसे ज्यादा असर उन लोगों पर पड़ा है जो रोजमर्रा की यात्रा के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर निर्भर हैं। महिलाएं, छात्र और नौकरीपेशा लोग अब या तो ऑटो, साझा वाहन या निजी साधनों का सहारा लेने पर मजबूर हैं। इससे उनका समय और पैसा दोनों बर्बाद हो रहा है।
एक स्टूडेंट ने बताया कि “पहले कॉलेज जाने के लिए सीधी बस मिल जाती थी, अब दो-तीन वाहन बदलकर जाना पड़ता है। खर्च भी बढ़ गया और समय भी ज्यादा लग रहा है।”
विशेषज्ञों की राय
एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, भोपाल में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सुचारु बनाने के लिए कम से कम 800 बसों की जरूरत है। फिलहाल बसों की संख्या दोगुनी होने के बजाय लगातार घट रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ई-बसों को समय पर नहीं उतारा गया तो लोगों का भरोसा पब्लिक ट्रांसपोर्ट से उठ जाएगा और निजी वाहनों का दबाव और बढ़ेगा।
भोपाल नगर निगम और राज्य सरकार दोनों ही दावा कर रहे हैं कि ई-बस प्रोजेक्ट से स्थिति में सुधार आएगा। लेकिन जब तक विवादों का हल नहीं निकलता और बसों की संख्या पर्याप्त नहीं बढ़ाई जाती, तब तक आम जनता की परेशानी दूर होना मुश्किल है।
